सरस्वती विद्या मंदिर में गुरु गोविंद सिंह मनाई गई जयंती

श्री वंशीधर नगर:,स्थानीय सरस्वती विद्या मंदिर में दशम सिक्ख गुरु- गुरु गोविंद सिंह जयंती का शुभारंभ विद्यालय के प्रधानाचार्य रविकांत पाठक, आचार्य अशोक कुमार द्वारा भारत माता, ॐ, मां शारदे एवं गुरु गोविंद सिंह जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और पुष्पार्चन कर किया गया।

आचार्य अशोक कुमार ने अपने बौद्धिक में कहा कि नौ साल के आयु में गुरु गोविंद सिंह जी सिक्ख धर्म के दशवें गुरु बने थे। उनके द्वारा ही नारा दिया गया था कि _"जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल"_ । 

जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल का मतलब है कि ईश्वर ही अंतिम सत्य है, ईश्वर के बिना कोई कार्य संभव नहीं हैं जो इस बात को मानते हैं उस पर ईश्वर का आशीर्वाद सदा बना रहेगा।

उन्होंने मुगलों के विरुद्ध बहुत संघर्ष किया और कभी भी अपने धर्म को नहीं छोड़ा। अपने धर्म और देश की रक्षा करने में वे दृढ़ संकल्पित और एक पर्वत की तरह अडिग थे। 

उनका कहना था कि "सवा लाख से एक लड़ाऊं, तब गोविंद सिंह नाम कहाऊँ" जो कि उनकी साहस और वीरता को दर्शाता है। उनके द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य देश और धर्म की रक्षा करना है। उन्होंने खालसा पंथ के पांच *क* प्रतीक बताए – केश नहीं कटवाना, कंघा रखना, कड़ा पहनना, कृपाण रखना और कच्छा धारण करना। गुरु गोविंद सिंह जी के पूरे परिवार ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर दिया था। उनके पिता गुरु तेगबहादुर भी नवम गुरु के पद पर शोभित हुए थे। अतः इस दिन गुरु गोविंद सिंह जी को याद करके उनके जैसा देश भक्त बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

कार्यक्रम को सफल बनाने में विद्यालय के सभी आचार्य-दीदी जी एवं भैया-बहनों की प्रमुख भूमिका रही।

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