वन अधिकार अधिनियम के बरगढ़ प्रखंड प्रखंड प्रभारी जेम्स हेरेंज के नेतृत्व में सामुदायिक वन संसाधनों पर ग्राम सभाओं का आयोजन

भंडरिया :बड़गड प्रखण्ड के गाड़िया गाँव मे वन अधिकार अधिनियम के बरगढ़ प्रखंड प्रखंड प्रभारी जेम्स हेरेंज के नेतृत्व में सामुदायिक वन संसाधनों पर ग्राम सभाओं का आयोजन कर सदियों से मालिकाना हक रहा है। गाँव के लोग वन संसाधनों की संरक्षा, पुनर्जीवित करने, परिरक्षित करने तथा प्रबंध करते आ रहे हैं। यही वजह रही है कि भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम की धारा 3 (1) (झ) में पारंपरिक रूप संरक्षण और परिरक्षण करने का अधिकार दिया है। लेकिन गढ़वा जिला प्रशासन ने 56 ग्राम सभाओं को एक साजिश के तहत निर्गत पट्टे में प्रबंधन के अधिकार से वंचित रखा है। इसे लेकर संघर्ष तेज करने का आह्वान वन अधिकार मामलों के जानकार जेम्स हेरेंज ने 7 प्रखण्डों से शामिल पारंपरिक अगुओं के बैठक मे यहबाते कही बैठक बड़गढ़ प्रखण्ड के गड़िया गाँव में वन अधिकार संघ के बैनर तले आयोजित की गई थी। 

 आदिवासी मामलों के जानकार सुनील मिंज ने कहा कि पारंपरिक गाँव सभा को कानून ने अब गाँव सरकार का दर्जा प्रदान किया है। ग्राम सभा को पेसा अधिनियम 1996 के तहत असीमित अधिकार दिए गए हैं। जिसके अंतर्गत ग्राम सभाएं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका निभाएंगी। उन्होंने कहा कि विधायी शक्ति के तहत गाँव के विकास और भाषा संस्कृति के लिए स्थानीय स्तर पर नियम बना सकेंगे। कार्यपालिका की शक्ति के तहत वे बनाए गए नियम और योजनाओं का क्रियान्वयन कर सकेंगे और उक्त नियमों का अनुपालन नहीं होने पर ग्राम न्यायालय के द्वारा फैसले किए जाएंगे। 

 चिनिया प्रखण्ड से चलकर आई महिला समाजिक कार्यकर्त्ता कविता सिंह खरवार ने हाल के दिनों में वन विभाग के द्वारा वृक्षारोपण के नाम पर ट्रेंच खुदाई, पिट खुदाई जैसे कार्यों का ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कर विरोध करने की अपील की। उन्होंने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि वन विभाग बिना ग्राम सभा से पारित योजनाओं को जबरन थोपने का प्रयास कर रहा है। विभाग का यह कृत्य पूर्णतया गैर सांविधानिक है। इसे ग्राम सभाएं हर हाल में रोकें। वहीं साहित्यकार ज्योति लकड़ा ने ग्राम सभाओं से अपील की कि वन विभाग द्वारा वन अधिकार कानून के विरुद्ध गाँव में गठित वन सुरक्षा समितियों को तत्काल ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कर इसे भंग करें। उसके स्थान में कानून सम्मत वन अधिकार समिति का गठन कर सरकार के संबंधित विभागों को लिखित में सूचित करें। यही समितियाँ आनेवाले समय में संवैधानिक समितियाँ मानी जाएंगी।    

 इस मौके पर कई अन्य पारंपरिक नेताओं ने अपने विचार ब्यक्त करते हुए कहा कि अबुआ दिशुम अबुआ सरकार के होते हुए भी रोजगार के लिए युवा वर्ग बाहर पलायन करने को विवश हैं। जिससे मानव ब्यापार में तेजी आ रही है। गाँव का सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई ताना बाना विकृत हो रहा है, जिसे ग्राम सभा को सशक्त कर रोके जाने की आवश्यकता है।  

 बैठक के अंत में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिसमें आदिवासियों के अधिकारों के खिलाफ कानूनी लापरवाही को लेकर बड़गढ़ प्रखण्ड से रंका अनुमंडल के सात प्रखण्ड होते हुए पैदल मार्च कार्यक्रम की जाएगी। यह मार्च कार्यक्रम जिला मुख्यालय पहुँच कर अनिश्चितकालीन धरना एवं प्रदर्शन में तब्दील हो जाएगी। मार्च के दरम्यान जगह-जगह नुक्कड़ सभा, जन सभा, वृत चित्र प्रदर्शन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्चे, पोस्टर आदि के जरिए लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जाएगी। इस अनिश्चित कालीन धरना कार्यक्रम में अलग-अलग गाँव से प्रत्येक दिन न्यूनतम 30 आंदोलनकारी शामिल रहेंगे। धरने के माध्यम से हरेक दिन अपनी माँगों के समर्थन में जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा। यह धरना प्रदर्शन कार्यक्रम तब तक जारी रखा जाएगा, जब तक वन अधिकार संघ की सभी माँगे पूरी नहीं की जाएगी। अन्य वक्ताओं में मुख्य रूप से प्रमण्डलीय वनाधिकार संघ के संयोजक माणिकचन्द कोरवा, उपसंयोजक मनराखन सिंह, बड़गढ़ 20 सूत्री कार्यक्रम के अध्यक्ष बिश्राम बाखला, नरेगा सहायता केंद्र के फिरोज लकड़ा एवं अरगेन केरकेटटा, चपलसी के ग्राम प्रधान, बयाखुरा के प्रदीप मिंज, चिनिया के अरुण सिंह, जमौती के रामप्रसाद, शिवकुमार सिंह व प्रदीप मिंज आदि शामिल थे। सभा की अध्यक्षता एवं संचालन गड़िया वन अधिकार समिति के पृथ्वी टोप्पो ने किया

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